BJP

देश में लंबे समय से धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर वोटों की फसल काटी जा रही है. बीजेपी के नेता कई रैलियों में धार्मिक ध्रुवीकरण पैदा हो, ऐसे बयान दे चुके हैं. हाल ही में बीजेपी सांसद परवेश वर्मा ने कहा है कि सभी मुसलमानों का बहिष्कार करो. जाहिर है उन्होंने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है. इसके बाद यूपी के लोनी से बीजेपी के ही विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने कहा है कि हम जिहादियों को मारते रहेंगे. नंदकिशोर गुर्जर 2015 में भीड़ द्वारा मारे गए अखलाक को पहले सूअर कहते हैं, फिर कहते हैं चलो जिहादियों को मारो. मतलब मुसलमानों को मारो.

तो सवाल यहां पर उठ खड़ा हुआ है कि बीजेपी के लिए लक्ष्मण रेखा क्या है? नूपुर शर्मा के बयान पर बीजेपी की काफी किरकिरी हुई थी. विदेशों से भी आवाजें उठी थी. बीजेपी को नूपुर शर्मा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा था. बीजेपी पर कई तरह के आरोप पिछले कुछ सालों में लगते रहे हैं. इतना ही नहीं बीजेपी की ही भोपाल की सांसद ने महात्मा गांधी को लेकर भी अपमानजनक टिप्पणी की थी तथा गोडसे का महिमामंडन किया था. बीजेपी के नेताओं द्वारा एक धर्म के खिलाफ दिए जा रहे बयानों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है.

एक बीजेपी के एमपी का कहना है कि मुसलमानों की दुकान से कुछ मत खरीदो, उन्हें नौकरी मत दो. क्या यह नफरत नहीं है? एक बीजेपी का विधायक कहता है कि मुसलमानों की हत्या करेगा. क्या यह नफरत नहीं है? लेकिन इसकी निंदा नहीं हो रही है. पुलिस के द्वारा एक्शन नहीं लिया जा रहा है. जबकि दिल्ली पुलिस गृह मंत्री अमित शाह को रिपोर्ट करती है. प्रधानमंत्री मोदी भी सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास जैसा नारा दे चुके हैं. उसके बाद भी बीजेपी के ही नेता प्रधानमंत्री मोदी की बातों की अवहेलना करते हुए नजर आते हैं.

कई तरह के धार्मिक सम्मेलन बुलाए जा रहे हैं और यह सम्मेलन बुलाने वाले संगठन बीजेपी को समर्थन करते हैं. पिछले दिनों योगेश्वर आचार्य विश्व हिंदू परिषद के सम्मेलन में था जिसमें उसने मुसलमानों के खिलाफ कई तरह की बयानबाजी की, लेकिन कोई एक्शन नहीं हुआ. इससे पहले यति नरसिंहानंद ने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और मदरसों को बम से उड़ा दो. नरसिंहानंद ने लक्ष्मण रेखा को मजाक बना दिया, एक बार नहीं कई बार. लेकिन कोई एक्शन नहीं.

देश में माहौल बिगड़ने वालों के खिलाफ एक्शन लेने में आखिर गृह मंत्रालय संकोच क्यों कर रहा है? बीजेपी के नेता लगातार बयान बाजी कर रहे हैं एक धर्म विशेष के खिलाफ. दूसरी ओर बीजेपी को समर्थन देने वाले संगठन एक धर्म विशेष के खिलाफ नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं, उनके खिलाफ माहौल तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं और इनके बयानों से माहौल खराब हो भी सकता है. लेकिन क्या वजह है कि बार-बार लक्ष्मण रेखा पार करने के बाद भी इन पर कोई पुलिसिया एक्शन नहीं हो रहा है?

इससे पहले भी दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी सरकार में मंत्री अनुराग ठाकुर ने भड़काऊ नारे दिए थे. लेकिन उन पर भी किसी तरह का कोई एक्शन नहीं लिया गया. पुलिस भी एक्शन नहीं लेती है और चुनावों के दौरान ऐसे कोई बयान दिए जाते हैं तो जब तक दबाव ना बने तब तक चुनाव आयोग भी बीजेपी की इन नेताओं पर कोई एक्शन नहीं लेता है. तो क्या यह मान लिया जाए कि पूरा खेल खुलकर खेला जा रहा है?

एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी शहर-शहर जाकर धार्मिक मंदिरों के उद्घाटन कर रहे हैं. दूसरी तरफ बीजेपी के नेता तथा बीजेपी को समर्थन करने वाले संगठनों के नेता एक धर्म विशेष के खिलाफ बयान बाजी कर रहे हैं. देश में साफ दिखाई दे रहा है कि धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण के जरिए सत्ता का खेल खेला जा रहा है. तो क्या जनता को भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है? जनता को भी उसकी मूलभूत जरूरतों से अब कोई लेना-देना नहीं? जनता भी एक धर्म विशेष के खिलाफ फैलाई जा रही नफरत को देखकर खुश है?

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