Aman chopra

हमारी भारतीय मीडिया पिछले कुछ सालों से संदेह के घेरे में है और वह पिछले कुछ सालों में हर वह काम करती हुई नजर आई है जो उसे नहीं करना चाहिए. मीडिया का काम होता है जनता की आवाज उठाना तथा शासन और प्रशासन अगर कहीं गलत कर रहा है तो उसे टोकना. लेकिन पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि भारतीय मीडिया का स्तर लगातार गिर रहा है. इसलिए इसे अब गोदी मीडिया भी कहा जाने लगा है. क्योंकि यह सत्ता की हां में हां मिलाती हुई नजर आती है.

सोशल मीडिया पर गुजरात का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक व्यक्ति को कुछ लोग खंभे से बांधकर डंडो से मार रहे हैं. इस वीडियो की कुछ लोग आलोचना कर रहे हैं, तो एक वर्ग ऐसा भी है जो इसका समर्थन कर रहा है और समर्थन करने वाला वर्ग किस विचारधारा का समर्थक है और किस राजनीतिक पार्टी का समर्थन करता है यह हमें यह बताने की जरूरत नहीं है. क्योंकि सभी को मालूम है कि तालिबानी सजा का समर्थन भारत में कौन करता है. खास तौर पर अगर ऐसी सजा एक विचारधारा विशेष के लोग देते हुए नजर आते हैं तो.

न्यूज़-18 के पत्रकार अमन चोपड़ा (Aman Chopra) ने इसको लेकर अपने चैनल पर एक कार्यक्रम किया तथा उसका वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. जिसमें उन्होंने लिखा कि, ‘New form of ‘Dandiya’ by Gujrat Police.’

हालांकि अमन चोपड़ा ने अपने ट्वीट पर सफाई भी पेश की और एक पत्रकार द्वारा की गई टिप्पणी पर लिखा कि, सर प्रणाम, बिना पूरा वीडियो देखे आपसे ऐसे निष्कर्ष की अपेक्षा नहीं थी. आपको जवाब दे रहा हूँ क्योंकि आपसे ही सीखा है कि बिना तथ्यों को परखे निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए. वीडियो में मैंने कहा कि ‘क़ानून हाथ में लेने का अधिकार पुलिस को भी नहीं’ पर आप भी कुछ चुनिंदा लोगों के ट्रैप में आ गए.

हालांकि अमन चोपड़ा ने जो सफाई पेश की है उसका मकसद कुछ भी हो और जिस पूरे वीडियो की बात वह कर रहे हैं उसमें उन्होंने जो बोला है उसका मकसद कुछ भी हो. लेकिन कहीं ना कहीं जो उन्होंने कहने की और वायरल करने की कोशिश की है और उसके पीछे जो मकसद रहा है उसमें वह कामयाब होते हुए नजर आए हैं. यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि ऐसी सजा की मांग कौन सी राजनीतिक विचारधारा के लोग करते रहे हैं या फिर किसके खिलाफ ऐसी सजा दी जाती है, तो कौन लोग खुशी मनाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय मीडिया और उससे जुड़े हुए लोग अंदर ही अंदर तालिबानी सजा का स्वागत कर रहे हैं?

अमन चोपड़ा को लेकर कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत में भी एक ट्वीट किया. जिसमें उन्होंने लिखा कि- वह उछल उछल के खम्भे से बंधे एक आदमी की पब्लिक पिटाई को ‘गुजरात पुलिस का गरबा’ बताता रहा. कुछ और लोग मुग्ध हो मज़ा लेते रहे क्या शनैः शनैः – थोड़ा थोड़ा – धीरे धीरे मेरे देश को तालिबान बनाया जा रहा है? और तुम अब भी चुप रहोगे? ठीक है…पर याद रखना – अगला नम्बर तुम्हारा ही है. हालांकि इसमें उन्होंने कहीं भी अमन चोपड़ा का नाम नहीं लिखा.

देखा जाए तो मीडिया पिछले कुछ सालों में अपनी छवि को खुद नुकसान पहुंचाता हुआ नजर आ रहा है. मीडिया का काम होता है सरकार से सवाल करना. विपक्ष के नेताओं की बातों को अधिक से अधिक मंच देना. ताकि सरकार बेलगाम ना हो. लेकिन इस वक्त देश में जो मीडिया दिखाई दे रहा है वह सरकार के नेताओं की हां में हां मिलाता हुआ नजर आ रहा है. सरकार गलत कर रही हो या सही कर रही हो इसकी जांच मीडिया करता हुआ नजर नहीं आ रहा है. यह मीडिया देश में एक संप्रदाय विशेष के खिलाफ पिछले कुछ सालों से माहौल तैयार करने की कोशिशों में भी लगा हुआ है. तो क्या यह मान लिया जाए कि यह मीडिया तालिबानी राज जैसा कुछ आता हुआ देख कर खुश हो रहा है?

पिछले कुछ सालों में यह भी देखा गया है कि विपक्ष की सरकारों को मौजूदा केंद्र सरकार की शह पर राज्यों में गिरा दिया गया. यह कहीं ना कहीं लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ भी हुआ. लेकिन मीडिया आंख मूंदकर यह सब कुछ देखता रहा और इसे मौजूदा सरकार और उसके नेताओं का मास्टर स्ट्रोक बताता रहा. ऐसे में सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या सच में अब देश की जनता को मीडिया पर भरोसा करना चाहिए? क्या देश की जनता को मीडिया पर और उससे जुड़े हुए लोगों पर अब भरोसा है भी?

जो मीडिया आज तालिबानी सजा पर खुश दिखाई दे रहा है, यही मीडिया कुछ महीनों पहले हो रहे किसान आंदोलन में शामिल किसानों को देशद्रोही और खालिस्तानी बताता हुआ भी नजर आई थी. किसान आंदोलन की कवरेज मेंस्ट्रीम मीडिया ने जिस तरह से की थी उसको कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है. क्योंकि मीडिया किसान आंदोलन के वक्त सरकार के साथ कदमताल मिलाती हुई नजर आ रही थी और हर कदम पर किसान आंदोलन के खिलाफ माहौल तैयार करने की कोशिश करती हुई भी दिखाई दे रही थी. यही मीडिया कुछ महीनों पहले कोविड-19 के वक्त एक समुदाय विशेष के खिलाफ भी माहौल तैयार करती हुई नजर आई थी.

जो मीडिया आज तालिबानी सजा पर तालियां बजा रही है, शासन प्रशासन का समर्थन कर रही है, यही मीडिया चुनावों से कई महीनों पहले से ही एक अदृश्य सर्वे के आधार पर सरकार के समर्थन में माहौल तैयार करती है, देश के मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता सर्वे के आधार पर आसमान छूती हुई बताती नजर आती है. यही मीडिया चुनावों से कुछ वक्त पहले विपक्ष को पूरी तरीके से खत्म बताती हुई भी नजर आती है. तो क्या सच में ऐसी मीडिया से आम जनमानस का भरोसा नहीं उठ जाना चाहिए, अगर थोड़ा बहुत बचा भी है तो?

अमन चोपड़ा जैसे कई ऐसे एंकर और पत्रकार टीवी चैनलों पर दिखाई देते हैं जो लगातार एक समुदाय विशेष के खिलाफ भड़काऊ और भ्रामक खबरें चलाते हैं और इसी के साथ-साथ एक समुदाय विशेष के समर्थन में भी यह लोग हर वक्त नजर आते हैं और यह समर्थन तब तक ही होता है जब तक, जिसका यह समर्थन कर रहे हैं उससे केंद्र की मोदी सरकार को और राज्यों में बीजेपी की सरकारों को लाभ नजर आए. यह एंकर और पत्रकार अपने सोशल मीडिया के माध्यम से भी बीजेपी की सरकार और नेताओं का समर्थन करते हुए नजर आते हैं. जब मीडिया से जुड़े हुए लोग खुलकर हर वक्त सरकार का समर्थन करें तो फिर जनता इन पर भरोसा कैसे करें?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here