भारतीय मीडिया को लेकर लंबे समय से एक बहस छिड़ी हुई है और मीडिया के एक हिस्से को लेकर आम जनमानस में एक अलग ही धारणा बनी हुई है. क्योंकि मीडिया का एक हिस्सा मोदी सरकार की नीतियों से प्रभावित नजर आता है. मीडिया का यही हिस्सा विपक्ष के खिलाफ देश में माहौल बनाता हुआ भी नजर आता है. मीडिया का यही हिस्सा देश के अंदर धर्म के आधार पर तनाव पैदा करता हुआ भी नजर आता है. मीडिया का यही हिस्सा मोदी सरकार के खिलाफ उठ रही आवाजों को कुचलने में सरकार की मदद भी करता हुआ नजर आता है.
इस वक्त राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर है. विपक्ष का एक बड़ा नेता है देश में पैदल मार्च कर रहा है और लोगों के बीच से नफरत को खत्म करने की बात कर रहा है. इसके बावजूद मीडिया राहुल गांधी को और उनकी यात्रा को उस तरह की तवज्जो नहीं दे रहा है जैसा मोदी की छोटी-छोटी बातों को तवज्जो देता हुआ नजर आता है. सड़क पर राहुल गांधी की यात्रा का असर दिखाई दे रहा है, लेकिन मीडिया के कानों में जूं नहीं रेंग रही है. इस यात्रा में राहुल गांधी की मां और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी भी शामिल हुई लेकिन मीडिया में इसको लेकर कोई पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं चलाई गई.
देश के अंदर एक मीडिया ऐसा है जो खुलकर मोदी सरकार का समर्थन करता हुआ नजर आता है और खुलकर ही विपक्ष को बदनाम करता हुआ भी नजर आता है. लेकिन एक मीडिया देश में ऐसा भी है जो मोदी सरकार और उसकी नीतियों का खुलकर विरोध करता है. लेकिन मोदी सरकार का विरोध कर रहा यह मीडिया विपक्ष का, खास तौर पर कांग्रेस और राहुल गांधी का खुलकर समर्थन करता हुआ नजर नहीं आता है. जो मीडिया मोदी सरकार का विरोध करता हुआ नजर आता है वह मीडिया जनता को मोदी का विकल्प कौन है यह बताते हुए नजर नहीं आता है.
देश के अंदर इस वक्त जो मीडिया मोदी सरकार का समर्थन करता हुआ नजर आता है उसको मोदी सरकार से कहीं ना कहीं इनाम भी मिलता है. सरकार द्वारा उसे भरपूर फंड मिलता है, विज्ञापन मिलते हैं, जिसके कारण वह सरकार से सवाल नहीं करता है और विपक्ष को लगातार कटघरे में खड़ा करता है. लेकिन जो मीडिया मोदी सरकार का विरोध करता है उसे फंडिंग सरकार की तरफ से नहीं मिलती. मोदी सरकार का विरोध करने वाला मीडिया फंडिंग के लिए जनता पर आश्रित है और जनता के द्वारा ही इन्हें ऑनलाइन फंडिंग की जाती है.
मोदी सरकार की नीतियों से जो जनता त्रस्त है वह वैकल्पिक मीडिया का समर्थन करती हुई नजर आती है. ऑनलाइन पोर्टल बहुत सारे हैं. इसके अलावा यूट्यूब पर भी कई पत्रकारों ने अपना चैनल बनाया हुआ है, जिसके माध्यम से वह मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं और जनता के मुद्दों को उठाते हुए नजर आते हैं. लेकिन यही न्यूज़ पोर्टल और यूट्यूब चैनल जनता के सहारे चल तो रहे हैं लेकिन जनता को विकल्प के तौर पर मोदी के सामने कौन होना चाहिए यह बताते हुए नजर नहीं आते हैं. तो क्या जनता के भरोसे चल रही यह वैकल्पिक मीडिया जनता से फंडिंग लेकर जनता को धोखा नहीं दे रही है?
जनता की फंडिंग पर चल रही वैकल्पिक मीडिया अगर जनता को मोदी के विकल्प के बारे में नहीं बताएगी, किसी एक नाम पर जनता को विचार करने के लिए नहीं बोलेगी तो आखिर मोदी के विरोध से मतलब ही क्या है? जब मोदी का विरोध होता रहेगा और जनता के लिए विकल्प नहीं तैयार किया जाएगा, अगर जनता के लिए राजनीतिक विकल्प तैयार नहीं होगा तो मोदी सरकार केंद्र में बनी रहेगी. इसका मतलब तो यही है कि वैकल्पिक मीडिया भी मोदी विरोध के नाम पर अपनी दुकान चला रही है और कहीं ना कहीं विपक्ष को दरकिनार करने की कोशिश कर रही है.
जो जनता वैकल्पिक मीडिया का समर्थन कर रही है, उसे फंडिंग भी दे रही है और उसे विकल्प के तौर पर कोई पार्टी, कोई नेता इस मीडिया के द्वारा नहीं मिल रहा है, उस जनता को एक बार फिर से वैकल्पिक मीडिया के बारे में भी सोचना होगा कि क्या यह सिर्फ मोदी विरोध तक ही सीमित हैं और कहीं ऐसा तो नहीं कि यह खुद चाहते हैं कि केंद्र में मोदी की सरकार बनी रहे. ताकि विरोध के नाम पर इनकी खुद की दुकान चलती रहे? कई पत्रकारों ने अपने यूट्यूब चैनल खोले हुए हैं और उसी के सहारे मोदी सरकार और उसकी नीतियों का विरोध करते हैं. लेकिन कभी भी यह पत्रकार विकल्प के तौर पर राहुल गांधी का और कांग्रेस का नाम लेते हुए नजर नहीं आते हैं.
पत्रकारिता के कई बड़े नाम ऐसे हैं जो पहले कई बड़े चैनलों पर काम करते हुए नजर आते थे. लेकिन आज अपने यूट्यूब चैनल के सहारे ही वह पत्रकारिता कर रहे हैं और यह पत्रकार राज्यों के चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं का प्रचार-प्रसार भी करते नजर आए थे. इसके अलावा कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जो किसान आंदोलन को लगातार कवर कर रहे थे और उनकी तारीफ भी हुई थी. लेकिन यही पत्रकार अब भारत जोड़ो यात्रा से बराबर की दूरी बनाए हुए हैं, राहुल गांधी से बराबर की दूरी बनाए हुए नजर आ रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि यह खुद चाहते हैं कि राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा उठाई जा रही बातों को दरकिनार किया जाए, राहुल गांधी को विकल्प के तौर पर पेश न किया जाए?
राहुल गांधी की यात्रा को जिस तरह का जनसमर्थन मिल रहा है वह अभूतपूर्व है. राहुल गांधी इस वक्त भारत जोड़ो यात्रा पर हैं. राहुल गांधी पिछले कई सालों से मीडिया की आलोचना करते रहे हैं और उनका मानना रहा है कि मीडिया मोदी सरकार के कंट्रोल में है. विपक्षी पार्टियों को और खास तौर पर कांग्रेस तथा राहुल गांधी को मीडिया पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. लेकिन जिस तरह से वैकल्पिक मीडिया भी राहुल गांधी से और कांग्रेस से बराबर दूरी बनाए हुए हैं उससे इस वक्त यही लग रहा है कि वैकल्पिक मीडिया का समर्थन कर रही जनता को एक बार फिर से इस वैकल्पिक मीडिया के बारे में सोचने की जरूरत है.
वैकल्पिक मीडिया में कुछ ऐसे भी हैं जो पब्लिक की फंडिंग से चल रहे हैं. सोशल मीडिया के जरिए यह मीडिया पब्लिक के द्वारा फंड इकट्ठा करती है, जिससे वह अपने संसाधनों की पूर्ति कर सकें. लेकिन पब्लिक के फंड से चल रही यह मीडिया भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को उस तरह कवर करती नजर नहीं आई है जिस तरह से एक विपक्ष के नेता को मीडिया में या फिर वैकल्पिक मीडिया में कवरेज मिलनी चाहिए. इससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि वैकल्पिक मीडिया भी अपनी दुकान पब्लिक फंड से चला तो रही है, लेकिन वह भी कहीं ना कहीं यही चाहती है कि केंद्र में मोदी की सरकार बनी रहे. ताकि विरोध के नाम पर पब्लिक की मदद से इनकी दुकान चलती रहे.