मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले क्या बीजेपी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर स्वर्गीय माधवराव सिंधिया का सपना पूरा कर सकती है? यह सवाल इन दिनों राज्य के सियासी गलियारों में और दिग्गज नेताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर बीजेपी एक तीर से दो शिकार कर सकती है. इस फैसले से कांग्रेस के सामने भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 10 मार्च को स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की 78वीं जयंती के अवसर पर ग्वालियर में आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लिया.
इतिहास गवाह है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया की पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ गहरी दोस्ती थी. मध्य प्रदेश में जब पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की कुर्सी पर 1989 में चुरहट मामला सामने आने के बाद खतरा मंडरा रहा था उस समय मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पहला नाम माधवराव सिंधिया का सामने आया था.
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चाहते थे कि माधवराव सिंधिया को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाए. मगर अर्जुन सिंह ने मोतीलाल वोरा के नाम पर सहमति जताते हुए विधायक दल का फैसला कर दिया. इसके बाद साल 1993 में भी मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में माधवराव सिंधिया का नाम सबसे ऊपर आया था, लेकिन उस समय भी केंद्रीय राजनीति में सक्रिय अर्जुन सिंह ने दिग्विजय सिंह का नाम आगे कर दिया.
इस प्रकार दो बार माधवराव सिंधिया मुख्यमंत्री बनते हुए रह गए. अब सवाल उठ रहा है कि क्या माधवराव सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने का सपना ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरा करेंगे और भाजपा इसके लिए कदम आगे बढ़ाएगी? अगर सिंधिया को मध्य प्रदेश की कमान सौंप दी जाती है तो ऐसे में कांग्रेस के सामने भी बड़ी मुश्किल पैदा हो सकती है. बीजेपी यह संदेश देने में कामयाब हो सकती है कि हम युवाओं को आगे बढ़ात हैं.
हालांकि पूर्व मंत्री और विधायक तथा कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा के मुताबिक अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी चुनाव लड़ती है तो बीजेपी की जनविरोधी नीतियां कांग्रेस को मजबूती की ओर आगे बढ़ाएंगी. उनका कहना है कि बीजेपी केवल खुद के मन की बात ही कर रही है. यही सिलसिला भोपाल से दिल्ली तक चल रहा है. इसलिए पूरी बीजेपी में उथल-पुथल मची हुई है.