प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार नित नए विकास के दावे करती रही है. लेकिन रुपए में एक बार फिर बड़ी गिरावट आई है. शुक्रवार को यह 16 पैसे गिरते हुए 82.33 रुपए प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंच गया. यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है रुपए में. ऐसे में सवाल है कि क्या इस रिकॉर्ड स्तर तक गिरने के बाद रुपए में और गिरावट होगी? क्योंकि बीते कई महीनों से रुपए के लगातार गिरने को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित सभी मोदी सरकार पर हमलावर हैं.
भारतीय रुपए को लगातार नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. विदेशी निवेशकों ने इस साल भारतीय संपत्ति से रिकॉर्ड 29 बिलीयन डॉलर की निकासी की है. रुपए के कमजोर होने का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर होता हुआ दिखाई दे रहा है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि रुपए के कमजोर होने का मतलब है कि अब देश को उतना ही सामान खरीदने के लिए ज्यादा रुपए खर्च करने पड़ेंगे. आयात वाले सामान महंगे होंगे. इसमें कच्चा तेल, सोना जैसी चीजें शामिल हैं.
दरअसल हर एक देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह आयात-निर्यात करते हैं. विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा का असर दिखाई देता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर और इस वक्त यह बेहद ही कमजोर नजर आ रही है और वह भी तब जब बीजेपी सरकार में है और प्रधानमंत्री मोदी हैं.
विश्व बैंक ने गुरुवार को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के अनुमान को भी घटा दिया है. इसने 6.5% की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है और यह जून 2022 के अनुसार देखा जाए तो 1% कम है. दूसरी तरफ इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी आईएमएफ ने वैश्विक मंदी की चेतावनी तक दे दी है. दुनिया भर के निर्माताओं से अपील की है कि वह मंदी को रोकने के लिए कदम उठाएं. यह आशंका बढ़ती जा रही है कि दुनिया एक गंभीर आर्थिक मंदी की चपेट में आने वाली है.
जो चेतावनी दी गई है उसकी सबसे बड़ी वजह कोविड-19 के बाद दुनिया भर में लगे लॉकडाउन और उसकी वजह से पूरी दुनिया में कारोबार पर असर पड़ना बताया जा रहा है और इसके अलावा यूक्रेन रूस का युद्ध भी इस पर असर डाल रहा है. ताजा अनुमान है कि इस लड़ाई की कीमत पर लगभग 2,80000 करो डॉलर का नुकसान होगा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि अमेरिका, यूरोप, चीन, इंग्लैंड जैसे देश अगर मंदी की चपेट में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं तो भारत कैसे इस खतरे से बच सकता है और इससे बचने के लिए क्या मोदी सरकार कोई कदम उठाती हुई दिखाई दे रही है?
दुनिया के बड़े-बड़े देश मंदी की चपेट में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसका असर भारतीय रुपए पर भी दिखाई दे रहा है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था भी डामाडोल दिखाई दे रही है. ऐसे में मोदी सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत इस वक्त भारतीय मीडिया भी नहीं दिखा रही है और भारत सरकार भी इसको लेकर कोई ठोस कदम उठाती हुई नजर नहीं आ रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर भारत भी मंदी की चपेट में आ जाता है फिर इससे जनता कैसे उबरेगी?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार इसको लेकर मोदी सरकार को चेतावनी देते रहे हैं, देश को आगाह करते रहे हैं. लेकिन मोदी सरकार और उसके मंत्री राहुल गांधी की बातों को नजरअंदाज करते हुए उनका ही मजाक उड़ाते हुए नजर आए हैं. मोदी सरकार की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि विपक्षी पार्टी के नेताओं की बातों को गंभीरता से लेती हुई नजर नहीं आती है. जबकि जब देश संकट में हो उस वक्त जरूर सभी पार्टियों के नेताओं की बातों को सुनना चाहिए और मिलकर समाधान निकालना चाहिए. लेकिन ऐसा मोदी सरकार करेगी ऐसा लगता नहीं है.
जिस वक्त ऐसा लग रहा है कि पूरी दुनिया के बड़े-बड़े देश मंदी की चपेट में जाएंगे, जिससे भारत भी अछूता नहीं रहेगा, उस वक्त मोदी सरकार के मंत्री और बीजेपी के बड़े-बड़े नेता चुनावी रैलियों में और सभाओं में दावा कर रहे हैं कि देश लगातार तरक्की कर रहा है. दुनिया के तमाम बड़े देश मोदी जी की सलाह मानते हैं. मोदी जी की बातों को ध्यान से सुनते हैं. बीजेपी के नेताओं द्वारा दावे किए जाते रहे हैं कि देश बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है और विकास के पथ पर तेजी से तरक्की कर रहा है. लेकिन जब देश विकास के पथ पर तेजी से तरक्की कर ही रहा है तो फिर रुपया कमजोर क्यों हो रहा है और अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट क्यों देखी जा रही है?